ये कैसा ‘शिक्षा’ का अधिकार, नौ साल में सिर्फ 10 एडमिशन

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धीरज अग्निहोत्री, फर्रुखाबाद

शिक्षा का अधिकार अधिनियम कड़ाई से लागू करने के लिए जोर दिया जा रहा है। हालांकि शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही और प्राइवेट स्कूल संचालकों की मनमानी से गरीबों को इसका लाभ अब तक नहीं मिल सका है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत पब्लिक स्कूलों की 25 फीसद सीटों पर गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है। इसके बावजूद ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता। शिक्षा विभाग की लापरवाही से प्राइवेट स्कूल संचालक गरीब बच्चों का स्कूल में प्रवेश नहीं लेते। यही कारण है कि पिछले नौ साल में सिर्फ दस गरीब बच्चों के एडमिशन प्राइवेट स्कूलों में हो सके हैं। इस सत्र में आए 28 आवेदन

वर्ष 2019-20 में अब तक 18 ऑनलाइन और 10 ऑफलाइन आवेदन आए हैं। बीएसए के मुताबिक इनकी जांच के बाद स्कूलों में प्रवेश की प्रक्रिया कराई जाएगी। तीन चरणों में होते हैं एडमीशन

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत तीन चरणों में प्रवेश होते हैं। 2019-20 में पहले चरण के एडमिशन की प्रक्रिया हो चुकी है। दूसरे और तीसरे चरण की प्रक्रिया की तारीखें जल्द घोषित होंगी। अभिभावक जहां रहते हैं उससे एक किमी की परिधि में आने वाले पब्लिक स्कूल में बच्चे का प्रवेश करा सकते हैं। यह है प्रक्रिया

पब्लिक स्कूल में बच्चे का प्रवेश हो जाने पर अभिभावक के खाते में पांच हजार रुपये भेजे जाते हैं। इस पैसे से वह बच्चों के लिए कापी, किताबें, ड्रेस और जूते-मोजे खरीद सकता है। इसके अलावा जिस स्कूल में दाखिला है उस स्कूल के खाते में विभाग 18 सौ रुपये सालाना शुल्क प्रतिपूर्ति जमा करता है। एडमिशन के लिए जरूरी प्रपत्र

आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, अभिभावक का आधार कार्ड, राशनकार्ड।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत पब्लिक स्कूलों की 25 फीसद सीटों पर नर्सरी और कक्षा एक में गरीब बच्चों को प्रवेश दिए जाने का प्रावधान है। विभाग अपनी तरफ से प्रयास करता है, लेकिन जागरुकता के अभाव में अभिभावक उत्सुकता नहीं दिखाते। आवेदन पत्रों के सत्यापन और लॉटरी के आधार पर ही प्रवेश होते हैं।

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